मछली का झोल और प्रशंसा के दो बोल

मछली हमारे घर मे बड़े चाव से बनाई भी जाती है और खाई भी जाती है। कल जब मैं रसोई में मछली तल रही थी न जाने कब आँखें नम हो गयीं और आँसु छलक आये। सहज ही अतीत के पन्नों को भेदती हुई एक स्नेहिल चिर परिचित आवाज़ कानों में गूंजने लगी। “वाह बेटा मज़ा आ गया! बहुत शानदार मछली बनी है, लाजवाब! मज़ा आ गया।” मछली पापा का सबसे प्रिय व्यन्जन थी। वैसे तो हर तरह का भोजन उन्हे प्रिय था किंतु मछली, माँस और मीठे से उन्हे विषेश लगाव था।खाने _पीने के बेहद शौकीन।भोजन सादा हो या चटक, खिचड़ी हो या ना – ना प्रकार के व्यंजन उसका पूर्ण आनंद उठाते हुए गृहण करते। जितने खाने के शौक़ीन उतने ही खाना पकाने के। खिलाना पिलाना, अतिथियों की आवभगत करना उनके खास शौक थे। खाने के प्रति उनकी रुचि व जस्बा देखकर बनाने वाले की आत्मा तृप्त हो जाती। जब प्रसन्न हो कर तारीफ के दो शब्द कह प्रोत्साहन बढ़ाते तो दिल बाग़ -बाग़ हो जाता । माँ के हाथों की खीर, रबड़ी उन्हें बेहद भाती। दो- चार दिन खीर न बने तो पूछ उठते , “अरे भई बहुत दिन हो गये, खीर नहीँ बनी?” वाकई !मैनें बहुत कम ऐसे लोग देखे हैं जो इतनी सहजता व सरलता से व्यक्ति व वातावरण को ऊर्जा से समाहित कर देते हैं। तारीफ़ के दो शब्द कितने बहुमूल्य होते हैं, ये अहसास तब उतना न हुआ, जितना अब होता है।

कमियाँ तो सभी में होती हैं और बहुत जल्द लोगों की नज़र में आ जाती हैं। निंदा, टिप्पणी करना व त्रुटियाँ निकालना मानव स्वभाव है और कुछ हद तक यह ज़रूरी भी है, इसलिए कहा भी गया है “निंदक नियेरे राखिए “। अधिकांशतह निन्दा परिस्थिती या व्यक्ति मेँ सुधार करने के हेतु प्रयुक्त की जाती है किन्तु लोग इसका प्रयोग अक्सर बिना सोचे -विचारे करतें हैं और प्रायः यह नकारात्मक प्रभाव डालता है।

किसी इन्सान की बुराईयों या कमियों में अच्छाई या गुण देखना भी अपने आप में एक अनूठा गुण है। मैंने पापा को देखा छोटी-छोटी बातों में प्रोत्साहन देते हुए, बड़ी _बड़ी गल्तियों को क्षमा करते हुए; साधारण सी कविता का गुणगान करते हुए, मामूली से चित्र की आड़ी तिरछी लकीरों की बेवजह ही सराहना करते हुए। अच्छा लगता है, कुछ करने का, कर दिखाने का ख्वाब सच्चा लगता है।

असफलता में, दर्द में, मुसीबत आने पर ताना कसने, मखौल उड़ाने व किनारा कर लेने वालोँ की कोइ कमी नहीं । आड़े वक्त में शान्त चित्त से, चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट के साथ गंभीर प्रभावशाली आवाज में सांत्वना देना और अँधेरे में खोई उम्मीद की किरण दिखलाना निश्चय ही कोई साहसी व पराक्रमी एवं स्वतंत्र विचारों का धनी ही करा सकता है।

आज भी कानों में गूंज रहीं है बचपन में अनेकों बार पापा की कही ये पंक्तियां, ” बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुध ले” तो कभी याद आता है अंग्रेज़ी का मुहावरा ‘expect the best, be prepared for the worst.” हर हार को हिम्मत से स्वीकार करने की ताकत भी मात्र सहारे व संवेदना से नहीं आती, यह आती है सकारात्मक सोच, व्यापक द्रष्टिकौण, भरोसे और आत्मविश्वास से। आत्मविश्वास की नीवं पड़ती है उस भरोसे और विश्वास से जो आपको मिलता है आपके प्रारंभिक संघर्षों में, जो मिलता है आपके अपनों से , आपके वातावरण से।

प्रशन्सा , प्रोत्साहन और विश्वास से सिंचित मन न सिर्फ इन्सान की जिजीविषा और कार्यक्षमता को प्रशस्त करता है वरन् चुनौतियों से जूझने के लिए परिपक्व बनाता है।

फिर भी मानव हृदय कोमल है , रिश्तों की नाजुक डोर से बन्धा हुआ। न जाने क्योँ ये चंचल मन आज फिर वही चिर परिचित उत्साही, स्नेहमयी, खनकदार और रौबिली अवाज सुनने को मचल गया।ऐसा लगा मानों कहीँ से आवाज आ रही है, “बहुत खूब बेटा, ऐसे ही लिखते रहो, तुम्हारी कलम में तो जादू है।” आँखें नम ज़रूर हुइ पर सहसा मन प्रफुल्लित हो उठा।

कुछ धरोहर अनमोल हैं, वो तो इस तरह हमारे जीवन में रची बसी है कि मानों हमारे अस्तित्व का अभिन्न अंग हैं। सच है वक्त के बन्धन से मुक्त ये जीवन में हमे निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा देती हैं।

यही सोचते सोचते कब मछली तला गयी, आभास ही न हुआ।

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3 thoughts on “मछली का झोल और प्रशंसा के दो बोल

  1. अति सुंदर गरिमा।। 👌👏👏👏 कुछ यादें बहुत अनमोल होते हैं।।

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